December 23, 2024

नकल और समान नागरिक संहिता के बाद उत्तराखंड सरकार ला रही एक और कड़ा कानून, उपद्रवियों पर नकेल कसने की तैयारी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार लगातार एक के बाद एक कड़े कानून बना रही है। समान नागरिक संहिता, नकल रोधी कानून, जबरन मतांतरण पर रोक को कानून व सरकारी भूमि पर अतिक्रमण पर सख्त कानून लाने के बाद अब दंगाइयों से निपटने को देश का सबसे सख्त कानून की दिशा में कदम आगे बढ़े हैं। इसके अंतर्गत उपद्रवियों से न केवल क्षति की पूरी वसूली की जाएगी, बल्कि आठ लाख तक का जुर्माना अलग से भी लगाया जा सकेगा। अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में सरकार लॉ एंड ऑर्डर को भी मेंटेन करेगी।

सरकार लाने जा रही संपत्ति क्षति वसूली कानून
देवभूमि में धामी सरकार लगातार कड़े फैसले लेकर जनता के बीच अपनी पैठ गहरी कर रही है। इस कड़ी में अब सरकार उत्तराखंड लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली कानून लाने जा रही है। इससे संबंधित अध्यादेश कैबिनेट ने स्वीकृत कर दिया है। इस अध्यादेश में स्पष्ट किया गया है कि सरकारी संपत्ति में केंद्र व राज्य सरकार से संबंधित सभी कार्यालय, निगम व उपक्रम लोक संपत्ति के दायरे में आएंगे।

दावा अभिकरण का होगा गठन
संपत्ति की क्षति के दावों की सुनवाई के लिए दावा अभिकरण का गठन किया गया है। इनकी संख्या एक से अधिक हो सकती है। यह दावा अभिकरण संपत्ति की क्षति आकलन के लिए जांच कर सकती है। इसके लिए दावा आयुक्त नियुक्त किए जाएंगे। दावा आयुक्त तीन माह के भीतर जांच कर दावा अभिकरण को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे। गुण दोष के आधार पर प्रतिकर संबंधी निर्णय लिया जाएगा।

अधिकारी और लेखाकार नहीं कर सकेंगे आदेशों की अवहेलना
विभिन्न विभागों में कार्यरत वित्त अधिकारी एवं लेखाकार सरकार के आदेशों की अवहेलना नहीं कर सकेंगे। उनका नियंत्रण अब वित्त विभाग के अंतर्गत लेखा विभाग के पास होगा। मंत्रिमंडल ने इस महत्वपूर्ण निर्णय पर मुहर लगाई। आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय समेत विभिन्न विभागों में कार्यरत वित्त अधिकारियों एवं लेखाधिकारियों को लेकर विवाद सामने आ चुके हैं। सहायक लेखाधिकारी व लेखाधिकारी में से 20 प्रतिशत पदोन्नति के कोटे के अंतर्गत वित्त विभाग में अधिकारी बनते हैं। विभिन्न विभागों में कार्यरत इन सहायक लेखाधिकारियों व लेखाधिकारियों की तैनाती, स्थानांतरण, पदोन्नति में एकरूपता लाने के लिए मंत्रिमंडल ने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।

पदोन्नति को लेकर विवाद की नहीं आएगी नौबत
वर्तमान में प्रदेश में सहायक लेखाकार के 666 और लेखाकार के 606 पद सृजित हैं। अब सभी सहायक लेखाकार व लेखाकार वित्त विभाग के लेखा विभाग के अंतर्गत आ जाएंगे।इससे उनकी वरिष्ठता और पदोन्नति को लेकर विवाद की नौबत नहीं आएगी।

मंत्रिमंडल के निर्णय से होगा समाधान
अभी तक यह भी देखने में आया है कि विभिन्न विभागों में कार्यरत लेखाकारों को विभागवार पदोन्नति के अवसर मिलने की स्थिति में कनिष्ठता और वरिष्ठता के विवाद उत्पन्न होते हैं। मंत्रिमंडल के इस निर्णय से इस समस्या का समाधान भी हो सकेगा। उत्तर प्रदेश यह व्यवस्था काफी पहले लागू कर चुका है। वहां की व्यवस्था का अध्ययन करने के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है।

तीन वर्ष तक का किया जा सकेगा दावा
इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि याची द्वारा तीन वर्ष तक न्यायालय फीस (जो सरकार तय करेगी) के साथ याचिका दाखिल की जा सकेगी। विभागों की ओर ये कार्यालयाध्यक्ष, मुख्य कार्यपालक अथवा उनके द्वारा नामित व्यक्ति दावा कर सकेंगे। निजी संपत्ति के लिए संपत्ति का स्वामी, प्रतिनिधि अथवा न्यासी याचिका दाखिल कर सकेंगे।

दावा अभिकरण स्वयं भी ले सकता है संज्ञान
दावा अभिकरण किसी की सूचना अथवा स्वप्रेरणा से संज्ञान ले सकता है कि इस अधिनियम के अंतर्गत क्षति हुई है। दावा अभिकरण दावा याचिका प्रस्तुत करने के विलंब को माफ कर सकता है, यदि उसे याची युक्तिसंगत कारण देता है।

ये नियम होंगे अनिवार्य
लोक अथवा निजी संपत्ति की प्रतिपूर्ति के लिए याची को प्रतिवादी के रूप में उन व्यक्तियों का नाम डालना होगा, जो उसके संज्ञान में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में शामिल थे। इनमें वह उनका नाम भी डाल सकता है, जिसने प्रदर्शन के लिए आह्वान किया हो अथवा वह उसमें शामिल हो। बशर्ते पुलिस रिपोर्ट में भी वह नाम होना चाहिए। नोटिस का जवाब न देने पर होगी एकपक्षीय कार्यवाही यदि कोई प्रतिवादी नोटिस को तामील नहीं करता अथवा उसका जवाब नहीं देता तो एकपक्षीय कार्यवाही की जा सकती है। इसके लिए उसकी संपत्ति को कुर्क करने के साथ ही उनकी संपत्ति को न खरीदने के लिए सार्वजनिक सूचना भी प्रकाशित की जाएगी।

याचिका में डालना होगा प्रतिवादी का नाम
उपद्रव अथवा दंगे की घटना की दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर पुलिस क्षेत्राधिकारी की रिपोर्ट व अन्य एकत्रित सूचनाएं जिलाधिकारी कार्यालय को घटना के तीन माह के भीतर उपलब्ध करानी होंगी। उद्देश्य यह कि इस रिपोर्ट को दावा अभिकरण के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके, जिसके आधार पर याचिकाओं की सुनवाई होगी।